दृढ़संकल्प करना अर्थात असम्भव को सम्भव के रूप मे देखना

by uttarakhandsankalp

देहरादून : जिसे दुनिया असम्भव मानती है, उसे सम्भव करके दिखाना है। इसके लिये परिवर्तन के दृढ़संकल्प का व्रत लेना है। व्रत करना अर्थात वृत्ति में परिवर्तन करना। दृढ़ संकल्प हमारे जीवन का फाउण्डेशन है। जिसे महात्मा लोग कठिन समझते हैं, असम्भव समझते हैं, उसे दृढ़ संकल्प की पवित्रता द्वारा सम्भव कर सकते हैं और प्रैक्टिकल में करके दिखा सकते हैं।

मन-बचन-कर्म और वृत्ति दृष्टि के पवित्रता के अनुभव द्वारा आत्मिक स्थिति सहज बन जाती है। आत्मिक स्थिति का सीधा सम्बन्ध आत्मविश्वास से है। आत्मिक स्थिति स्वयं को खुश रखती है और दूसरों को भी खुश रखती है। आत्मिक स्थिति सदैव बनी रहनी चाहिये। आत्मिक स्थिति की कीर्ति कमजोर हो जाने पर हम कमजोर हो जाते हैं, इससे मन में संकल्प की कमजोरी होगी, बोल में कमजोरी होगी, कर्म में कमजोरी होगी और स्वप्न में भी कमजोरी होगी। क्योंकि पवित्र आत्मिक स्थिति से मन-बचन-कर्म और स्वप्न स्वतः शक्तिशाली होता है।

फाउण्डेशन की कमजोरी का अर्थ है, हमारे पवित्रता की कमजोरी । अपने को चेक करना है। कोई बात परसेंटेज में न हो बल्कि कम्पलीट हो। कमजोरी का कारण है परचिन्तन, प्रदर्शन और तीसरा श्रीमत की जगह परमत। ये तीनों शब्द विघन उत्पन्न करते हैं। इस पर एक सेकेण्ड में परिवर्तन का फुलस्टाॅप लगाना है। प्योरिटी की परसनालिटी को रियलिटी की राॅयल्टी कहते हैं। पवित्रता त सिर्फ ब्रहमचर्य नहीं है। व्यर्थ संकल्प भी अपवित्रता है। व्यर्थ बोल के अन्तर्गत रौब को क्रोध का अंश कहते हैं, इसको प्रातःकाल से रात्रि तक चेक करना है और संकल्प में धारणा की कमजोरी को समाप्त कर देना है।

अव्यक्त बाप-दादा-महा वाक्य मुरली 03 नवम्बर,2008

लेखक : मनोज श्रीवास्तव, उपनिदेशक सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग उत्तराखंड

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