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देहरादून : जिम का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट था। जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल, भारत में मैरी जेन और क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट के घर हुआ था। जिम कॉर्बेट के पिता नैनीताल के पोस्टमास्टर थे। 19 साल की उम्र में उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा छोड़ दी और बंगाल उत्तर-पश्चिमी रेलवे में शामिल हो गए। बाद में, उन्होंने ट्रांस-शिपमेंट माल के लिए एक ठेकेदार के रूप में काम करना शुरू कर दिया। बचपन में ही उनका झुकाव वन्यजीवों और जंगलों की ओर था। और, इस झुकाव ने बाद में उन्हें उस समय के सबसे अच्छे ट्रैकर्स और शिकारियों में से एक बनने में मदद की।
- 1907 से 1938 तक, उन्होंने 14 तेंदुओं और 33 आदमखोरों का शिकार किया।
- जिम कॉर्बेट जीवन भर अविवाहित रहे।
- प्रांतीय सरकार पर प्रभाव डालते हुए, अन्य संरक्षणवादियों के साथ जिम कॉर्बेट ने भारत के प्रथम पार्क की स्थापना में सहयोग किया।
- 8 अगस्त 1936 को भारत के पहले नेशनल पार्क की स्थापना की गई, जिसका नाम हैली नेशनल पार्क था। लेकिन, कॉर्बेट की मृत्यु के दो साल बाद, जिम कॉर्बेट के सम्मान में इसका नाम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया।
- कॉर्बेट की बहन का नाम मैग्गी था जो जीवन भर उनके साथ रहीं।
- कॉर्बेट के स्पेनिश कुत्ते का नाम रॉबिन था, जिसकी कब्र उनके कालाढूंगी आवास के पास बनी हुई है।
- कुमाऊँ और गढ़वाल के लोग जिम को कॉरपेट साहब कहते थे।
- जिम को 1928 में कैसर-ए-हिन्द के खिताब से नवाज़ा गया था।
- 1946 में राजा के जन्मदिन पर जिम को OBE या Order of British Empire से सम्मानित किया गया था।
- जिम नैनीताल नगरपालिका के पार्षद भी रहे थे।
- जिम की किताब जँगल लोर को उनकी आत्मकथा माना जाता है।
- जिम के मिल्कियत सम्बन्धी मुकदमों की पैरवी वकील गोबिन्द बल्लभ पंत करते थे, जो बाद में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
- छोटी हल्द्वानी उनका शीतकालीन घर आजकल कॉर्बेट म्यूजियम के रूप में उपयोग होता है।
- इसी घर में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो उनके कई बार मेहमान रहे, जो इस क्षेत्र में शिकार करने आते थे।
- भारत की आज़ादी के बाद जिम केन्या चले गए जहाँ 19 अप्रैल 1955 को उनका निधन हो गया।
- कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व देश-विदेश के पर्यटकों की पहली पसन्द है और इससे लगभग 30 करोड़ ₹ राजस्व प्रति वर्ष मिलता है।
- जिम कॉर्बेट की पुण्यतिथि पर महान शिकारी जो कालांतर में महान संरक्षणवादी बन गया, को विनम्र श्रद्धांजलि!!
- लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.